धार्मिक और राजनीतिक उन्माद
पिछले दिनों मैंने आपका ध्यान इस बात की ओर खींचना चाहा कि भारत में बढ़ते धार्मिक और राजनीतिक उग्रवाद से मानवीय संबंधों में कड़वाहट आ रही है. पिछले दो दिनों में कुछ ऐसी घटनाएँ हुईं जिससे मुझे लगा कि समस्या और भी गंभीर है: कड़वाहट तक सीमित ना होकर अब घृणा तक पहुँचने लगी है.

यह ज़हर इतना बढ़ता जा रहा है कि एक ही परिवार के 4 सदस्य आपस में धर्म और राजनीति पर स्वस्थ चर्चा नहीं कर सकते. उनका उन्माद देखकर कभी-कभी यूँ लगता है कि यदि उनके हाथों में तलवारें हों, तो एक दूसरे का गला ही काट दें.

कारण? दिन-रात यदि आप किसी विशेष धर्म या समुदाय के प्रति घृणा का भाव रखेंगे, तो यह आपके व्यक्तित्व को कुरूप बना देगी. और अनजाने, अनचाहे आप यह ज़हर उन लोगों को देने लगेंगे जो आपके प्रियजन हैं, क्योंकि आप लोगों को वही दे सकते हैं जो आपके पास है. यदि सुबह से लेकर रात तक घृणा और अशांति ही इकट्ठा कर रहे हैं, तो वही दे पाएँगे.

अपने विचारों पर चिंतन करके देखिए. यदि इनमें उग्रता, आक्रोश, घृणा की आग सुलग रही है, तो तुरंत सावधान हो जाइए क्योंकि यह 1 दिन आपके घर को ही जला देगी. आपकी घृणा से आपके "शत्रु" को क्षति हो ना हो उन लोगों को अवश्य होगी जो आपके आसपास हैं. और सबसे ज़्यादा आपको स्वयं होगी. आप एक पागलपन में जीने लगेंगे.